राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - rajasthan ke lok vadya yantra image with name in Hindi
जानिए राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - rajasthan ke lok vadya yantra image with name । trick। PDF in hindi के बारे में
इनके प्रमुख यंत्र -
Mangira' (मन्गिरा), 'Morchang' (मोरचांग) , 'Kamaicha' (कमायचा) , 'Algoja' (अलगोज ) , ‘Ektara’( इकतारा ) ,'Ravanhatta'( रावणहत्था)
'Damru' (डमरु), 'Kartal' (करतल)।
राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र हमेशा से ही इस प्रदेश की संस्कृति, परंपरा और मिजाज का प्रतीक रहे हैं। इन्हें सुनकर मन में स्वच्छंदता, प्रेम, समृद्धि की भावना पलती है।
राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र हमें पुरानी सदियों की मिठास, संगीत का पौराणिक स्वर, और हमारे धरोहर की महत्त्वपूर्ण सच्चाई का प्रतीक हैं। सन् 15वीं -16वीं शताब्दि से '
राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र समृद्ध संस्कृति का प्रमुख हिस्सा हैं, जहाँ में स्थलीय गीतों, नृत्यों, कहानियों के साथ-साथ मनोरञ्जन के माध्यम से भी प्रसिद्ध हुए हैं.
हमारी यह पोस्ट BSTC, RAJ. POLICE, PATWARI. REET, SSC GK, SI, HIGH COURT, 2nd grade, 1st grade पटवारी राजस्थान पुलिस और RPSC के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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रावणहत्था , जन्तर , गुजरी ,चिकारा , दुकाको,इकतारा, रवाज, रवाब, तन्दुरा/तम्बुरा/चाैैतारा/ वेणौ , सुरमण्डल , सुरिन्दा ,भपंग ,सारंगी ,कमायचा |
(2) फूंक मारकर बजाये जाते है (सुषिर वाध्य यंत्र ):---
नड , भुंगल , करणा , तुरहि ,सिंगी ,सिंगा ,मसक ,पूंगी/बीन ,बंशी / बांसुरी ,मुरली ,मुरला ,मोरचंगा ,अलगोजा ,शहनाई / नफ़ीरी /सुनरी ,रणभेरी ,बाकियो / बग्रु ,शंख ,सतारा |
(3) चमड़े से बने--थाप मारकर बजाये जाने वाले(अवणध्द वाध्य यंत्र):---
ढोल , ढोलक ,मादल ,भृदंल ,तबला , नगाड़ा ,घोसा ,कुंडी ,ढाक ,माठ ,कमर ,दमामा ,बम ,नौबत ,डेंरू ,चंग ,डफ,घेरा ,चंगड़ी ,डफरी ,खंजड़ी ,तासा |
(4) धातु से बने --- टकराकर बजाये जाते है ( घन वाध्य यंत्र ) :---
मंजिरा ,चिमटा/ चिप्यो ,झांझ ,झालर ,श्रीमांडल ,धुरालियो ,लेजिम ,भरनी ,नेवर ,घुंघरू ,रमझोल ,ताली , थाली ,घण्टा ,खड़ताल ,करताल |
राजस्थान का राज्य वाध्य यंत्र है |
एक साथ दो अलगोजे मुँह में बजाये जाते है |
अलगोजा नकसांसी से बजाया जाता है |
नकसांसी से बजाये जाने वाले वाध्ययंत्र -- अलगोजा , नड़ ,पुंगी
पीतल का बना हुआ वाध्ययंत्र होता है | जिसे मारवाड़ क्षेत्र में मांगलिक अवसरों में सरगड़ा जाति के लोग बजाते है |
पीतल का बाँकिया बना वाद्य ढोल के साथ मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। आकृति में यह बड़े बिगुल की तरह होता है। इसे तुरही का एक प्रकार माना जा सकता है। जोश, जूनून और जज़्बे को उजागर करता बाँकिया वाद्य प्राचीन समय में युद्ध के समय प्रयोग में लाया जाता था।
मांगलिक अवसरों पर नंगाड़े के साथ बजायी जाती है |
में तारो की संख्या दो होती है
रामदेव के भंजन गाते समय बजाया जाता है |
जोगी व लंगा जाति के कलाकार बजाते है |
मारवाड़ के जोगियों द्वारा गोपीचंद भृतहरि, निहालदे आदि के ख्याल गाते समय सारंगी का प्रयोग किया जाता है। मीरासी, लंगे, जोगी, मांगणियार आदि कलाकार सारंगी के साथ ही गाते है। कानों में मिश्री घोलती सारंगी की धुन मन मोह लेती है।
ये मांगणियार जाति का वाध्ययंत्र है |
कमायचा लंगा, मांगणियार कलाकारों की पहचान हैं। यह सारंगी की तरह का एक वाद्य यंत्र है जो रोहिड़े या आक की लकड़ी से बनाया जाता है। यह जैसलमेर-बाड़मेर के मांगणियारों के द्वारा बजाया जाता है। इसकी मधुर झंकार सबका मन मोह लेती है।
ये डमरू की आकृृति का बना वाध्य यंत्र है |
जिसे अलवर क्षेत्र में मेव बजाते है |
भपंग का प्रसिध्द कलाकार जहूरखान मेवाती हुआ |
भपंग डमरू के आकार का एक देसी साज है। यह वाद्य कटे हुए तूंबे से बना होता है जिसके एक सिरे पर चमड़ा मढ़ा होता है। चमड़े में एक छेद निकाल कर उसमें जानवर की आंत का तार अथवा प्लास्टिक की डोरी डालकर उसके सिरे पर लकड़ी का टुकड़ा बांध दिया जाता है। वादक इस वाद्य को कांख में दबाकर एक हाथ से उस डोरी या तांत को खींचकर या दीला छोड़कर उस पर दूसरे हाथ से लकड़ी के टुकड़े से प्रहार (आघात) करता है। तन-मन में थिरकन पैदा करता यह वाद्य मेवात इलाके में विख्यात है।
करना 7-8 फीट लम्बा पीतल से बना बिगुलनुमा वाद्य यंत्र है। इसके पिछले भाग से होठ लगाकर फेंक देने पर ध्वनि निकलती है। यह पुराने समय में युद्ध में विजय घोष करने के लिए प्रयुक्त होता था। कुछ मंदिरों में भी इसका वादन होता है। जोधपुर के मेहरानगढ़ के संग्रहालय में रखे करणा वाद्य को सबसे लंबा माना जाता है।
प्रसिध्द डाकू कर्णा भील नड़ बजाने का नामचिह्न कलाकार / प्रसिध्द था |
ये चमड़े के थेले से बना वाध्य यंत्र होता है | जिसे सवाईमाधोपुर क्षेत्र में माताजी और भेरोजी की भोपे बजाते है |
मशक भैरूजी के भोपों का यह प्रमुख वाद्य है। चमड़े की सिलाई कर बनाये गये इस वाद्य में एक सिरे पर लगी नली से मुंह से हवा भरी जाती है तथा दूसरे सिरे पर लगी अलगोजे नुमा नली से स्वर निकाले जाते हैं। इसके स्वर पूंगी की तरह सुनाई देते हैं।
ये बाड़मेर और जैसलमेर क्षेत्र में लंगा और मांगणियार जाति के कलाकार बजाते है |
मोरचंग/मुरचंग लंगा गायक समुदाय का पारंपरिक वाद्य यंत्र है । संगीत परिजात नामक ग्रंथ में इसे मुखचंग बताया गया है। मोरचंग लोहे का एक यंत्र है जो काफी छोटा होता है तथा कैंची जैसा दिखता है। इस यंत्र को दांतों के बीच में रख कर बाएँ हाथ से पकड़ा जाता है। दाएँ हाथ की उँगलियों से बजाते हुए सांसों को अंदर या बाहर खींचने पर इस यंत्र से धुनें निकलती हैं। घरासिया, कालबेलियों द्वारा बाँस का मुरचंग बजाया जाता है जिसे 'घुरालियो' कहते हैं। डीजे और आधुनिक वाद्यों को मात करता राजस्थान के मोरचंग का भी जवाब नहीं है, इससे मंत्रमुग्ध कर देनेवाली धुनें निकलती हैं।
मोहर्रम के अवसर में ताजिये निकालते समय और कत्ल की रात के समय बजाया जाता है |
ताशा मुगलकालीन वाद्य है। मिट्टी की दो बालिया व्यास की कटोरी जैसा इस वाद्य को जब चमड़े से मढ़ दिया जाता है तो उसे ताशा कहते हैं। दोनों हाथों में दो इन्द्रियाँ (खपाच्चियाँ) लेकर तड़बड़ शब्द निकाले जाते हैं। ताशे को गले में भी लटका लिया जाता है और ढोल के आश्रय से विभिन्न लयकारियाँ प्राप्त की जाती हैं।
ये शेखावटी क्षेत्र में धमाल गीत गाते समय बजाये जाते है |
और नृत्य करते समय बजाया जाता है |
पाबूजी की फंड ,रामदेवजी की फंड और डूंगजी - जवारजी के गीत गाते समय इसे बजाया जाता है |
भोपों का प्रमुख बाध है रावण हत्या पाबूजी की फड़ पूरे राजस्थान में विख्यात है जिसे भोपे बाँचते हैं। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। कड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं। ये गीत रायण हत्था पर गाये जाते हैं जो सारंगीनुमा वाय यत्न होता है। यह भोपों का प्रमुख वाया है जिसकी बनावट सरल है लेकिन सुरीलापन अनूठा है
यह वाद्य वीणा की तरह होता है। वादक इसको गले में डालकर खड़ा-खड़ा ही बजाता है। वीणा की तरह इसमें दो तूंबे होते हैं। इनके बीच बांस की लम्बी नली लगी होती लैं। इसमें कुल चार तार होते है। राजस्थान में यह वाद्य गूजर भोपों का प्रचलित वाद्य है।
सर्वप्रथम् अहोबल द्वारा चरित 'संगीत पारिजात' नामक ग्रन्थ में रबाब का उल्लेख मिलता है। इसका पेट सारंगी से कुछ लम्बा त्रिभुजाकार तथा डेढ़ गुना गहरा होता है। शास्त्रीय संगीत का बर्तमान सरोद इसी का परिष्कृत रूप है। इसमें तीन से सात तार तक होते हैं। इसे जबा से बजाया जाता है। यह एक तत् लोकवाद्य है। इसकी मधुर तान दिनभर की थकान दूर कर देती हैं।
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वाध्य चार प्रकार के होते है ---
(1)तार से बने ( तत्त वाध्य यंत्र ) :---रावणहत्था , जन्तर , गुजरी ,चिकारा , दुकाको,इकतारा, रवाज, रवाब, तन्दुरा/तम्बुरा/चाैैतारा/ वेणौ , सुरमण्डल , सुरिन्दा ,भपंग ,सारंगी ,कमायचा |
(2) फूंक मारकर बजाये जाते है (सुषिर वाध्य यंत्र ):---
नड , भुंगल , करणा , तुरहि ,सिंगी ,सिंगा ,मसक ,पूंगी/बीन ,बंशी / बांसुरी ,मुरली ,मुरला ,मोरचंगा ,अलगोजा ,शहनाई / नफ़ीरी /सुनरी ,रणभेरी ,बाकियो / बग्रु ,शंख ,सतारा |
(3) चमड़े से बने--थाप मारकर बजाये जाने वाले(अवणध्द वाध्य यंत्र):---
ढोल , ढोलक ,मादल ,भृदंल ,तबला , नगाड़ा ,घोसा ,कुंडी ,ढाक ,माठ ,कमर ,दमामा ,बम ,नौबत ,डेंरू ,चंग ,डफ,घेरा ,चंगड़ी ,डफरी ,खंजड़ी ,तासा |
(4) धातु से बने --- टकराकर बजाये जाते है ( घन वाध्य यंत्र ) :---
मंजिरा ,चिमटा/ चिप्यो ,झांझ ,झालर ,श्रीमांडल ,धुरालियो ,लेजिम ,भरनी ,नेवर ,घुंघरू ,रमझोल ,ताली , थाली ,घण्टा ,खड़ताल ,करताल |
राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - rajasthan ke lok vadya yantra image with name
अलगोजा वाध्य यंत्र
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राजस्थान का राज्य वाध्य यंत्र है |
एक साथ दो अलगोजे मुँह में बजाये जाते है |
अलगोजा नकसांसी से बजाया जाता है |
नकसांसी से बजाये जाने वाले वाध्ययंत्र -- अलगोजा , नड़ ,पुंगी
बांकियो वाध्य यंत्र
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पीतल का बना हुआ वाध्ययंत्र होता है | जिसे मारवाड़ क्षेत्र में मांगलिक अवसरों में सरगड़ा जाति के लोग बजाते है |
पीतल का बाँकिया बना वाद्य ढोल के साथ मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। आकृति में यह बड़े बिगुल की तरह होता है। इसे तुरही का एक प्रकार माना जा सकता है। जोश, जूनून और जज़्बे को उजागर करता बाँकिया वाद्य प्राचीन समय में युद्ध के समय प्रयोग में लाया जाता था।
शहनाई वाध्य यंत्र
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मांगलिक अवसरों पर नंगाड़े के साथ बजायी जाती है |
इकतारा वाध्य यंत्र
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में तारो की संख्या दो होती है
तन्दुरा/ तम्बूरा / चौतारा / वैैणो वाध्य यंत्र
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रामदेव के भंजन गाते समय बजाया जाता है |
सारंगी वाध्य यंत्र
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जोगी व लंगा जाति के कलाकार बजाते है |
मारवाड़ के जोगियों द्वारा गोपीचंद भृतहरि, निहालदे आदि के ख्याल गाते समय सारंगी का प्रयोग किया जाता है। मीरासी, लंगे, जोगी, मांगणियार आदि कलाकार सारंगी के साथ ही गाते है। कानों में मिश्री घोलती सारंगी की धुन मन मोह लेती है।
कमायचा वाध्य यंत्र
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ये मांगणियार जाति का वाध्ययंत्र है |
कमायचा लंगा, मांगणियार कलाकारों की पहचान हैं। यह सारंगी की तरह का एक वाद्य यंत्र है जो रोहिड़े या आक की लकड़ी से बनाया जाता है। यह जैसलमेर-बाड़मेर के मांगणियारों के द्वारा बजाया जाता है। इसकी मधुर झंकार सबका मन मोह लेती है।
भपंग वाध्य यंत्र
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ये डमरू की आकृृति का बना वाध्य यंत्र है |
जिसे अलवर क्षेत्र में मेव बजाते है |
भपंग का प्रसिध्द कलाकार जहूरखान मेवाती हुआ |
भपंग डमरू के आकार का एक देसी साज है। यह वाद्य कटे हुए तूंबे से बना होता है जिसके एक सिरे पर चमड़ा मढ़ा होता है। चमड़े में एक छेद निकाल कर उसमें जानवर की आंत का तार अथवा प्लास्टिक की डोरी डालकर उसके सिरे पर लकड़ी का टुकड़ा बांध दिया जाता है। वादक इस वाद्य को कांख में दबाकर एक हाथ से उस डोरी या तांत को खींचकर या दीला छोड़कर उस पर दूसरे हाथ से लकड़ी के टुकड़े से प्रहार (आघात) करता है। तन-मन में थिरकन पैदा करता यह वाद्य मेवात इलाके में विख्यात है।
नड़ वाध्य यंत्र
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प्रसिध्द डाकू कर्णा भील नड़ बजाने का नामचिह्न कलाकार / प्रसिध्द था |
सींगी वाध्य यंत्र
ये हिरण , बारह सींगी या भेंसे से सींग से बना वाध्य यंत्र होता है | जिसे जोगी जाति के कलाकार बजाते है |मसक वाध्य यंत्र
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मशक भैरूजी के भोपों का यह प्रमुख वाद्य है। चमड़े की सिलाई कर बनाये गये इस वाद्य में एक सिरे पर लगी नली से मुंह से हवा भरी जाती है तथा दूसरे सिरे पर लगी अलगोजे नुमा नली से स्वर निकाले जाते हैं। इसके स्वर पूंगी की तरह सुनाई देते हैं।
मोरचंग वाध्य यंत्र
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ये बाड़मेर और जैसलमेर क्षेत्र में लंगा और मांगणियार जाति के कलाकार बजाते है |
मोरचंग/मुरचंग लंगा गायक समुदाय का पारंपरिक वाद्य यंत्र है । संगीत परिजात नामक ग्रंथ में इसे मुखचंग बताया गया है। मोरचंग लोहे का एक यंत्र है जो काफी छोटा होता है तथा कैंची जैसा दिखता है। इस यंत्र को दांतों के बीच में रख कर बाएँ हाथ से पकड़ा जाता है। दाएँ हाथ की उँगलियों से बजाते हुए सांसों को अंदर या बाहर खींचने पर इस यंत्र से धुनें निकलती हैं। घरासिया, कालबेलियों द्वारा बाँस का मुरचंग बजाया जाता है जिसे 'घुरालियो' कहते हैं। डीजे और आधुनिक वाद्यों को मात करता राजस्थान के मोरचंग का भी जवाब नहीं है, इससे मंत्रमुग्ध कर देनेवाली धुनें निकलती हैं।
तासा वाध्य यंत्र
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मोहर्रम के अवसर में ताजिये निकालते समय और कत्ल की रात के समय बजाया जाता है |
ताशा मुगलकालीन वाद्य है। मिट्टी की दो बालिया व्यास की कटोरी जैसा इस वाद्य को जब चमड़े से मढ़ दिया जाता है तो उसे ताशा कहते हैं। दोनों हाथों में दो इन्द्रियाँ (खपाच्चियाँ) लेकर तड़बड़ शब्द निकाले जाते हैं। ताशे को गले में भी लटका लिया जाता है और ढोल के आश्रय से विभिन्न लयकारियाँ प्राप्त की जाती हैं।
बम वाध्य यंत्र
भरतपुर क्षेत्र में रसिया गीत गाये समय बजाया जाता है |नौबत वाध्य यंत्र
ये बहुत बड़े आकार का नगाड़ा होता है | जिसे मंदिरो के बाहर बजाया जाता है |चंग व डफ वाध्य यंत्र
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ये शेखावटी क्षेत्र में धमाल गीत गाते समय बजाये जाते है |
झांझ वाध्य यंत्र
ये बहुत बड़े - बड़े आकार के मंजीरे होते है जिसे कुचामनी ढाल में बजाया जाता है |रमझोड़ वाध्य यंत्र
चमड़े के पट्टे पर खूब सारे घुंघरू लगे होते है | जिसे टकने से लेकर घुटने तक बांधा जाता है |और नृत्य करते समय बजाया जाता है |
रावण हत्था वाध्य यंत्र
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पाबूजी की फंड ,रामदेवजी की फंड और डूंगजी - जवारजी के गीत गाते समय इसे बजाया जाता है |
भोपों का प्रमुख बाध है रावण हत्या पाबूजी की फड़ पूरे राजस्थान में विख्यात है जिसे भोपे बाँचते हैं। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। कड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं। ये गीत रायण हत्था पर गाये जाते हैं जो सारंगीनुमा वाय यत्न होता है। यह भोपों का प्रमुख वाया है जिसकी बनावट सरल है लेकिन सुरीलापन अनूठा है
जंतर वाद्य यंत्र
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यह वाद्य वीणा की तरह होता है। वादक इसको गले में डालकर खड़ा-खड़ा ही बजाता है। वीणा की तरह इसमें दो तूंबे होते हैं। इनके बीच बांस की लम्बी नली लगी होती लैं। इसमें कुल चार तार होते है। राजस्थान में यह वाद्य गूजर भोपों का प्रचलित वाद्य है।
रबाब वाद्य यंत्र
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बांसुरी वाद्य यंत्र
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चिमटा वाद्य यंत्र
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खड़ताल वाद्य यंत्र
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अन्य वाद्यों के साथ केवल ताल और लय में चमक पैदा करने के लिए खड़ताल बजाया जाता है। छह इंच से आठ इंच लम्बी और डेढ़-दो इंच चौड़ी साधारण सी दिखाई देने वाली लकड़ी की दो पट्टियां खड़ताल कहलाती है। खड़ताल बनाने के लिए सामान्य तथा रेगिस्तान में पैदा होने बाले कैर और बबूल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। कैर और शीशम की लकड़ी से बनी खड़ताल से अद्भुत छवि निकलती है। चौकोर लकड़ी की इन पट्टियों के कोने थोड़ी गोलाई लिये होते हैं ताकि हाथ में चुभे नहीं हाथ के एक अंगूठे के आन्तरिक भाग एवं दूसरी चारों अंगुलियों में हथेली के बीच खड़ताल रखकर बजाया जाता है। मीरा बाई के एक हाथ में इकतारा तो दूजे में खड़ताल दृष्टिगोचर होता है
पूंगी वाद्य एक विशेष प्रकार के तूंबे से बनता है। तूंबे का ऊपरी हिस्सा लंबा और पतला तथा नीचे का हिस्सा गोल होता है। तूंबे के निचले गोल हिस्से में छेदकर दो नलियां लगाई जाती हैं। इन नलियों में स्वरों के छेद होते हैं। अलगोजे के समान ही एक नली में स्वर कायम किया जाता है और दूसरी से स्वर निकाले जाते हैं। कालबेलियों और सपेरों का यह प्रमुख वाद्य है।
कहावत मशहूर है ढोल की थाप और नगाड़े की चोट एवं नगाड़े की संगत के बिना रंगत ही नहीं आती। नगाड़ा दो प्रकार का होता है एक छोटा और दूसरा बड़ा। छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। इसे लोकनाट्यों में शहनाई के साथ बजाया जाता है। लोक नृत्यों में बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह ही होता है। इसे बम या टामक भी कहते हैं। यह युद्ध के समय भी बजाया जाता था। यह वाद्य लकड़ी के डंडों से ही बजाया जाता है। ढोल और नगाड़ें के सम्मिलित वादन को नौबत कहते है। नगाड़े का छोटा रूप ढमामा कहलाता है।
डफली के घेरे में तीन या चार जोड़ी झांझ लगे हों तो उसे खंजरी कहते है। इसका वादन चंग की तरह हाथ की थाप से किया जाता है। ग्रामीण 1. क्षेत्रों का यह प्रसिद्ध वाद्य है। बांसुरी के साथ इसका वादन मनोहारी होता है।
ये भी जरूर पढ़े :---
Rajasthani Nari Ke Abhushan/नारी के आभूषण/राजस्थानी नारी के आभूषण/royal jewellery of rajasthan/rajasthani jewellery information/आभूषण
पुंगी वाद्य यंत्र
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पूंगी वाद्य एक विशेष प्रकार के तूंबे से बनता है। तूंबे का ऊपरी हिस्सा लंबा और पतला तथा नीचे का हिस्सा गोल होता है। तूंबे के निचले गोल हिस्से में छेदकर दो नलियां लगाई जाती हैं। इन नलियों में स्वरों के छेद होते हैं। अलगोजे के समान ही एक नली में स्वर कायम किया जाता है और दूसरी से स्वर निकाले जाते हैं। कालबेलियों और सपेरों का यह प्रमुख वाद्य है।
नगाड़ा वाद्य यंत्र
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कहावत मशहूर है ढोल की थाप और नगाड़े की चोट एवं नगाड़े की संगत के बिना रंगत ही नहीं आती। नगाड़ा दो प्रकार का होता है एक छोटा और दूसरा बड़ा। छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। इसे लोकनाट्यों में शहनाई के साथ बजाया जाता है। लोक नृत्यों में बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह ही होता है। इसे बम या टामक भी कहते हैं। यह युद्ध के समय भी बजाया जाता था। यह वाद्य लकड़ी के डंडों से ही बजाया जाता है। ढोल और नगाड़ें के सम्मिलित वादन को नौबत कहते है। नगाड़े का छोटा रूप ढमामा कहलाता है।
सुरनाई वाद्य यंत्र
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खंजरी वाद्य यंत्र
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डफली के घेरे में तीन या चार जोड़ी झांझ लगे हों तो उसे खंजरी कहते है। इसका वादन चंग की तरह हाथ की थाप से किया जाता है। ग्रामीण 1. क्षेत्रों का यह प्रसिद्ध वाद्य है। बांसुरी के साथ इसका वादन मनोहारी होता है।
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Rajasthani Nari Ke Abhushan/नारी के आभूषण/राजस्थानी नारी के आभूषण/royal jewellery of rajasthan/rajasthani jewellery information/आभूषण
Nice lekin photo niji mili